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मनोरंजक कथाएँ >> अद्भुत द्वीप

अद्भुत द्वीप

श्रीकान्त व्यास

प्रकाशक : शिक्षा भारती प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5009
आईएसबीएन :9788174830197

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जे.आर.विस के प्रसिद्ध उपन्यास स्विस फेमिली रॉबिन्सन का सरल हिन्दी रूपान्तर...

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उस टापू पर रहते हुए हमारे दिन-महीने और साल बीतते रहे। जैसे-जैसे दिन बीतते जाते थे। हमें सृष्टि की किसी न किसी नई रचना की जानकारी होती जाती थी। इस प्रकार गाय, भैंस, बैल, बकरी और भेड़ जैसे घरेलू जानवरों से लेकर खरगोश, हिरन जैसे जानवर तक हमारे साथी बन गए। हमारी चिड़ियों की दुनिया भी कम अद्‌भूत नहीं थी। जहां शुरू-शुरू में हमारे पास केवल मुर्गी, कबूतर और बत्तखें थीं, वहां अब हमने सारस और काले हंस भी पाल लिए थे। अब हमारे पास लम्बे-चौड़े खेत भी थे और हम अनाज भी पैदा करने लगे थे। उस टापू पर आए हमें अब पूरे दस साल हो चुके थे।

हमारे बच्चे भी अब काफी बड़े हो गए थे। फ्रिट्‌ज की उम्र पच्चीस वर्ष की थी और अर्नेस्ट तेईस साल का था। जैक की उम्र बाइस साल थी और तब का नन्हा फ्रांसिस भी अब सत्रह वर्ष का हो गया था। अब हमें किसी भी प्रकार की कमी नहीं थी। हम अपनी उस दुनिया में पूरी तरह सुखी थे। बच्चों पर भी हमने अब अनुशासन काफी ढीला कर दिया था। अब वे इतने बड़े हो गए थे कि अपना बुरा-भला खुद सोच सकें।

वे तरह-तरह के खेल-खेलते। वहां के पशुओं से भी वे मनोरंजन करते। घुड़दौड़ की जगह भैंसे की दौड़ उन्हें ज्यादा अच्छी लगती। कभी-कभी वे 'दि एलिजाबेथ' से छोटी-मोटी समुद्री यात्रायें भी करते रहते थे और दो-तीन रातें समुद्र में ही बिता देते थे। हां, अगर हमारे मन में कोई कसक थी तो बस इतनी कि अपने परिवार के लोगों के अलावा हमने पिछले दस वर्षों में किसी दूसरे आदमी का चेहरा नहीं देखा था।

एक दिन की बात है। सबेरा भी नहीं होने पाया था कि फ्रिट्‌ज ने नाव खोली और कहीं चल दिया। उसने अपने पीछे कोई सूचना भी नहीं छोड़ी कि कहां जा रहा है। धीरे-धीरे चार दिन बीत गए और वह वापस नहीं आया। अगर वह अकेला न गया होता तो शायद अधिक चिन्ता न होती, लेकिन चूंकि उसके साथ और कोई भी न था इसलिए हमारे मन में तरह-तरह की शंकाएं उठने लगीं। तब मैंने सुरक्षातट पर अपना झण्डा फहराकर एक बार तोप दागी। समुद्री सेनाओं और जहाजों में, खोए हुए आदमी का पता लगाने के लिए यही तरीका प्रयोग में लाया जाता है। कुछ देर बाद समुद्र में काफी दूर पर एक काला धब्बा-सा दिखाई दिया। उस धब्बे को देखकर सबको बड़ी आशा बंधी और हम लोग उसके किनारे आने की राह देखने लगे। जब वह धब्बा काफी स्पष्ट हो गया और लोग उसे साफ-साफ पहचान सके तब कहीं जाकर चिंता मिट पाई। हमारा अनुमान सही था। वह फ्रिट्‌ज की ही नाव थी। वह हमारे संकेत को देखकर चल पड़ा था।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस

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